Saturday, April 09, 2005

खर्ची

मुझे खर्ची मे पूरा एक दिन रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है झपट लेता है अंटी से
कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नही होती ..
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ
गरेबान से पकड़ के मांगने वाले भी मिलते हैं
" तेरी गुज़री हुई पुश्तोँ का कर्ज़ है तुझे किश्तें चुकानी हैं "
ज़बरदस्ती कोई गिरवी भी रख लेता है ,
ये कह कर अभी 2 - 4 लम्हे खर्च के लिए रख ले
बाकी उमर के खाते मे लिख देते हैं
जब होगा , हिसाब होगा .
बड़ी हसरत हैं ,
पूरा एक दिन एक बार अपने लिए रख लूँ
तुम्हारे साथ एक पूरा दिन बस ...
......खर्च करने की तमन्ना है

written by Gulzar
felt By almost everyone

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