मुझे खर्ची मे पूरा एक दिन रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है झपट लेता है अंटी से
कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नही होती ..
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ
गरेबान से पकड़ के मांगने वाले भी मिलते हैं
" तेरी गुज़री हुई पुश्तोँ का कर्ज़ है तुझे किश्तें चुकानी हैं "
ज़बरदस्ती कोई गिरवी भी रख लेता है ,
ये कह कर अभी 2 - 4 लम्हे खर्च के लिए रख ले
बाकी उमर के खाते मे लिख देते हैं
जब होगा , हिसाब होगा .
बड़ी हसरत हैं ,
पूरा एक दिन एक बार अपने लिए रख लूँ
तुम्हारे साथ एक पूरा दिन बस ...
......खर्च करने की तमन्ना है
written by Gulzar
felt By almost everyone
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