Wednesday, June 14, 2017

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

"चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है"
अगर आप मेरे इस ब्लॉग पर आये हैं तो मै ये मान की चलता हूँ की आपने न सिर्फ ये ग़ज़ल सुनी होगी बल्कि आपको पसंद भी होगी , ग़ुलाम अली साहब की गयी सबसे मशहूर ग़ज़ल है  शायर का नाम है #हसरतमोहानी , ग़ुलाम अली साहब ने जितने शेर रिकॉर्ड करवाए हैं वही सुने गए , उसमे भी कुछ समझ आयी कुछ नहीं (आपका पता नहीं पर मेरा यही हाल था ) 
आज ग़ुलाम अली की नहीं हसरत मोहानी पूरी ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ मायने के साथ - 
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चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है 

बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
हज़ाराँ - Thousand 
इज़्तिराब - Restlessness 
सद-हज़ाराँ - Hundred thousand 
इश्तियाक़ - Craving 

बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का
और तेरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है
जानिब = Direction 
ग़ुर्फ़े - Window 
 
तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
बेबाक = informal

खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़अतन
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छुपाना याद है
दफ़अतन - Suddenly
जान कर सोना तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
क़स्द - Effort
पा - Feet
बोसी - Kiss
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
अज़-राह-ए-लिहाज़ = By being considerate
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है 
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है 
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तेरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है
वस्ल = union ( मिलन )
फ़िराक़ = Seperation (जुदाई )
 ( ये शेर ग़ुलाम अली साहब ने ग़ज़ल में गलत गाया हुआ है
वो तेरा रो-रो के भी मुझ को रुलाना याद है 
#भी को आगे पीछे कर दिया है ) 

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
कोठे = Roof
आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़
अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है
सोहबत = company
राज़-ओ-नियाज़ = Secret
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है 
देखना मुझ को जो बरगश्ता तो सौ सौ नाज़ से
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है
बरगश्ता = upset
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है 

शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तेरा
और मेरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है
दस्त = Hands
पा = Feet
बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझे
आज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
इद्दिया = Claim
इत्तिक़ा =Cautious
अहद = Age
हवस = Lust

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