रात भी आई थी और चाँद भी था
साँस भी वैसे ही चलती है हमेशा की तरह
आँख वैसे ही झपकती है हमेशा की तरह
थोड़ी सी भीगी हुई रहती है और कुछ भी नहीं
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं
होठ खुश्क होते हैं और प्यास भी लगती है
आज कल शाम से सर्द हवा चलती है
खाक करने से धुआं उठता है जो दिल का नहीं
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं
रात भी आई थी और चाँद भी था
हाँ मगर नींद नहीं ... नींद नहीं
गुलज़ार साहेब
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