Saturday, October 10, 2009

आइना ( Mirror )

मै जब भी गुज़रा इस आईने से ...
इस आईने ने कुतर लिया कोई हिस्सा मेरा ।

कभी मेरा पूरा अक्स वापस नही किया , इस आईने ने
छुपा लिया कोई पहलू मेरा ।

दिखा
दिया कोई जाविया ऐसा ...

जिस-से मुझको मेरा कोई ऐब दिखने न पाए ।

और मै ख़ुद को देता रहूँ तसल्ली ...
की मुझसा दूसरा नही है कोई ।


गुलज़ार साहेब


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