इस आईने ने कुतर लिया कोई हिस्सा मेरा ।
कभी मेरा पूरा अक्स वापस नही किया , इस आईने ने
छुपा लिया कोई पहलू मेरा ।
दिखा दिया कोई जाविया ऐसा ...
जिस-से मुझको मेरा कोई ऐब दिखने न पाए ।
और मै ख़ुद को देता रहूँ तसल्ली ...
की मुझसा दूसरा नही है कोई ।
गुलज़ार साहेब
No comments:
Post a Comment