Tuesday, November 19, 2013

रूह देखी है कभी ?

रूह देखी है , कभी रूह को मासूस किया है ?
जागते जीते हुए दूधिया कोहरे से लिपट कर
सांस लेते हुए इस कोहरे को महसूस किया है ?

या शिकारे में किसी झील पे जब रात बसर हो
और पानी के छपाकों में बजा करती हों टलियां
सुबकियां लेती हवाओं के वोह बैन सुने हैं ?

चौदहवीं रात के बर्फाव से इस चाँद को जब
ढेर से साये पकड़ने के लिए भागते हैं
तुमने साहिल से लगे गिरजे कि दीवार से लगकर
अपनी गहनाती हुई कोख को महसूस किया है ?

जिस्म सौ बार जले , तब भी वही मिटटी का ढेला
रूह एक बार जलेगी तो वो कुंदन होगी

रूह देखी है , कभी रूह को मासूस किया है ?

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