मोड़ पे देखा है वो बूढा सा एक पेड़ कभी
मेरा वाकिफ़ है , बहुत सालों से उसको जानता हूँ
जब मै छोटा था तो एक आम उड़ाने के लिए
परली दीवार से कन्धों पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस शाख से पांव जा लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उसपे
मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर
मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने
और जब हामला थी बीबा , तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरह कैरियां फेंकी थी इसने
वक़्त के साथ सभी फूल सभी पत्ते गए
तब भी जल जाता था जब मुन्ने से कहती थी बीबा
हाँ उसी पेड़ से आया है तू , पेड़ का फल है
अब भी जल जाता हूँ जब मोड़ गुज़रते में कभी
खांस कर कहता है
क्यूँ सर के सभी बाल गए ?
सुबह से काट रहे है कमेटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको ....
:Gulzar
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