बंद शीशे के परे देख, दरीचों के उधर
सब्ज़ पेड़ों पे , घनी शाखों पे , फूलों पे वहाँ
कैसे चुपचाप बरसता है , मुसलसल पानी
कितनी आवाज़ें हैं , ये लोग हैं, बातें हैं मगर ..
ज़हन के पीछे , किसी और ही सतह पे कहीं
जैसे चुपचाप , बरसता है तसव्वुर तेरा.
: गुलज़ार
सब्ज़ पेड़ों पे , घनी शाखों पे , फूलों पे वहाँ
कैसे चुपचाप बरसता है , मुसलसल पानी
कितनी आवाज़ें हैं , ये लोग हैं, बातें हैं मगर ..
ज़हन के पीछे , किसी और ही सतह पे कहीं
जैसे चुपचाप , बरसता है तसव्वुर तेरा.
: गुलज़ार
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