Thursday, October 16, 2014

ख़्वाब

ख़्वाब तो देखता रहता हूँ मैं ...

मुश्किल ये है , आँख खुलने पे भी ख़्वाबों के चकत्ते नहीं जाते
आँख खुलती है , तो कुछ देर महक रहती है पलकों के तले
सूख जाते हैं , तो कुछ रोज़ में गिर जाते हैं, बासी होकर
ज़र्द से रेज़े हैं , उड़ते हैं फिर आँखों में महीनों !

मेरी आँखों से दरिया भी गुज़रते हैं मगर
दाग़ लग जायें तो धुलते नहीं , ख़्वाबों के कभी!


: गुलज़ार


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