Monday, October 20, 2014

उर्दू

ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बां का
मज़ा घुलता है लफ़्ज़ों का जुबां पर
कि जैसे पान में महंगा किमाम घुलता है

ये कैसा इश्क़ है उर्दू जुबां का
नशा आता है उर्दू बोलने में
गिलौरी की तरह है , मुँह लगी सब इस्तेलाहें , लुत्फ़ देती हैं
हलक़ छूती है उर्दू तो , हलक़ से जैसे मय का घूँट उतरता है
बड़ी "aristocracy " ज़बां में ,
फ़क़ीरी में नवाबी का मज़ा देती है उर्दू

अगरचे मानी कम होते हैं उर्दू में , अल्फ़ाज़ की यहाँ इफ़रात होती है
मगर फिर बुलंद आवाज़ में पढिए , तो बहुत ही मोतबर लगती है बातें
कहीं कुछ दूर से कानों में पड़ती है अगर उर्दू
तो लगता है की दिन जाडों के हैं , खिड़की खुली है , धूप अंदर आ रही है


अजब है ये ज़बां उर्दू
कभी यूँ ही सफ़र करते , अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे मीर , ग़ालिब का
वो चाहे अजनबी हो , यही लगता है , वो मेरे वतन का है
बड़ी शाइस्ता लहज़े में , किसी से उर्दू सुनकर
क्या नहीं लगता , कि एक तहज़ीब की आवाज़ है उर्दू


: गुलज़ार


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