वो कटी फटी हुई पत्तियां,
और दाग़ हल्का हरा हरा !
वो रखा हुआ था किताब में,
मुझे याद है वो ज़रा ज़रा !!
मुझे शौक़ था के मिलूं तुझे,
मुझे खौफ़ भी था कहूंगा क्या !
तेरे सामने से निकल गया,
बडा सहमा सहमा डरा डरा !!
बडा दोगला है ये शख्स भी,
कोइ ऐतबार करे तो क्या !
ना तो झूठ बोले कवि कभी,
ना कभी कहे वो खरा खरा !!
: Gulzar
और दाग़ हल्का हरा हरा !
वो रखा हुआ था किताब में,
मुझे याद है वो ज़रा ज़रा !!
मुझे शौक़ था के मिलूं तुझे,
मुझे खौफ़ भी था कहूंगा क्या !
तेरे सामने से निकल गया,
बडा सहमा सहमा डरा डरा !!
बडा दोगला है ये शख्स भी,
कोइ ऐतबार करे तो क्या !
ना तो झूठ बोले कवि कभी,
ना कभी कहे वो खरा खरा !!
: Gulzar
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