Wednesday, June 25, 2008

नज़्म ( nazm )

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठते ही नहीं

कब से बैठा हुआ हूँ मै जानम सादे कागज़ पे लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

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