चाँद को तकते हुए
कई बार मुझको यूँ लगा
जैसे अनजाने में
नज़रें तुमसे टकरा गईं हों
कौन जाने तुम भी
उस पल चाँद को तकती होगी .
हाँ ये और बात है
कि अब तो ये भी मुमकिन नहीं
अब तो हमारे रात-ओ-दिन में
आधे दिन का फर्क है
: Ashish Nigam
कई बार मुझको यूँ लगा
जैसे अनजाने में
नज़रें तुमसे टकरा गईं हों
कौन जाने तुम भी
उस पल चाँद को तकती होगी .
हाँ ये और बात है
कि अब तो ये भी मुमकिन नहीं
अब तो हमारे रात-ओ-दिन में
आधे दिन का फर्क है
: Ashish Nigam
2 comments:
खुबसूरत नज़्म दोस्त
Thanks बड़े भाई
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