Wednesday, December 31, 2014

दूरियाँ

चाँद को तकते हुए
कई बार मुझको यूँ लगा
जैसे अनजाने में
नज़रें तुमसे टकरा गईं हों
कौन जाने तुम भी
उस पल चाँद को तकती होगी .

हाँ ये और बात है
कि अब तो ये भी मुमकिन नहीं
अब तो हमारे रात-ओ-दिन में
आधे दिन का फर्क है


: Ashish Nigam


2 comments:

Unknown said...

खुबसूरत नज़्म दोस्त

Ashish Nigam said...

Thanks बड़े भाई