Wednesday, May 27, 2015

गुलज़ार के लिए , गुलज़ार के ही लफ़्ज़ों में

बहुत से हाथ उतरने लगे हैं कंधो पर
बहुत सी उंगलियाँ जुड़ने लगी हैं हाथो में
सलाम करते हैं वह लोग छू के माथे को
"वलाम" कहते थे जो सर की एक जुम्बिश से
हंसी की राल टपकती है लोगो के मुँह से
ख़ुलूस-ओ-शौक हठीली पे रख के लाते हैं
बड़े तपाक से मिलते हैं , मिलने वाले मुझे

हुई है तुझसे जो निस्बत , उसी का सदका है
वगरना …
वगरना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

‪#‎Gulzar ‪#गुलज़ार



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