
बस एक ही सुर में , एक ही लय पे , सुबह से देख … देख ,कैसे बरस रहा है उदास पानी फुहार के मलमली दुपट्टे से उड़ रहे हैं तमाम मौसम टपक रहा है तमाम कायनात रिस रही है हर एक शै भीग भीग कर देख कैसी बोझिल सी हो गयी है दिमाग की गीली गीली सोचों से भीगी भीगी उदास यादें टपक रही हैं थके थके से बदन में बस धीरे धीरे सासों का गर्म लोबान जल रहा है #Gulzar #गुलज़ार
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